गोलमठ की प्राचीन जनतान्त्रिक व्यवस्था

 भगवान श्री शीलेश्वर महादेव का उम्मेदाबाद स्थित मठ सम्भवत पूरे मारवाड राज्य का सबसे पुराना मठ है। इस मठ में कई सिद्ध महात्मागण अवतरित हुए हैं जिन्होंने इस तपोभूमी में योगसाधना करते हुए इस क्षेत्र की जनता को सनातन धर्म के वैदिक मार्ग पर कायम रखने में महत्वपूर्ण योग दिया है।

स्वतंत्रता प्राप्ति के समय मारवाड के लोकनायक स्व. श्री जयनारायणजी व्यास तथा किसान नेता स्व. श्री बलदेवरामजी मिर्धा से भी तत्कालीन पूज्य महंतजी का घनिष्ठ सम्बन्ध रहने से किसान जागृति हेतू इस क्षेत्र में महात्मागणों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। 

गोलमठ के इतिहास से आज सैकडो वर्ष पूर्व हमारी जनतान्त्रिक व्यवस्था की साक्षी हमें प्राप्त हो रही है। प्रात: स्मरणीय माता श्री अन्नपूर्णाजी ने अपनी दूरदर्शिता के कारण इस मठ के संचालन में आम जनता की महत्वपूर्ण भूमिका रखी है, परिणामस्वरूप कोई भी संचालक निरकुंश होकर स्वेच्छा-चारी नही बन सका है। कारण की गोलमठ का मुख्य विकास अन्नक्षेत्र के माध्यम से रहा है। अन्नक्षेत्र चलाने हेतू हमेशा यह परिपाटी रही है कि अनाज क्षेत्र के गाँवों से कटाला फेरी द्वारा प्राप्त हो। गोलमठ के क्षेत्र मे वैसे तो १०८ गाँव हैं परन्तु हमेशा अन्न क्षेत्र के चलाने योग्य अन्न ही एकत्रित करने हेतू प्रति वर्ष १०-१२ गाँवों मे कटाला फेरी हेतू स्वयं पूज्य महंतजी अथवा उनके शिष्य मण्डली से प्रतिनिधि जाते हैं। वहाँ आम जनता के समक्ष उनके द्वारा मठ के आय-व्यय की चर्चांए चलती है,तब जानकारी देनी पडती है। कटाला फेरी से प्राप्त अनाज का सदुपयोग होने पर ही जनता अति उत्साह से इस कार्य में योगदान करती है। इस प्रकार मठ के संचालन में जनता का अप्रत्यक्ष रूप से पूर्ण नियंत्रण रहता है तथा मठाधीश कभी तानाशाह नही बन सकते है और न इस मठ के महात्मागण गुरूद्वारे की परम्पराओं को तोडने की हिम्मत कर सकते हैं। गोलमठ में रहने वाले महात्माओं को आजन्म ब्रह्मचारी एवं सदाचारी रहकर गुरू द्वारा की गई मर्यादाओं में चलना पडता है। अन्यथा इस गुरूद्वारा से उनका सम्बंध विच्छेद हो जाता है।

गोलमठ के महंत पद पर महात्मा को चुनने की परिपाटी भी स्वस्थ जनतंत्र का रूप है। जब मठाधीश कैलाशवासी हो जाते हैं तो गाँव के प्रमुख नागरिक एकत्रित होकर किसी महात्मा को संचालन हेतू मठ की तमाम सम्पति अस्थाई रूप से सौंप देते है तथा गद्दी रस्म का शुभ मुहूर्त निकलवा कर गोलमठ की फेरी के १०८ गाँवों मे सूचना भेजते है। निर्धारित समय पर सभी ग्रामों के प्रमुखगण एकत्रित होकर श्रीमान ठाकुर सा ठिकाणा श्री बाकरा की अध्यक्षता में सभा करते हैं तथा महात्माजी की योग्यता के सम्बंध मे आपस मे विचार-विमर्श कर योग्य महात्मा को मठाधीश बनाना तय करते हैं फिर उन महात्माजी को भगवान शीलेश्वर के मंदिर में ले जाया जाता है तथा भगवान शिव के सामने उन्हें बाकरा ठाकुर सा चादर ओढाते हैं एवम् उनके गादी तिलक किया जाता हैं। इस प्रकार योग्य साधु ही आम जनता की सहमति से मठाधीश बनते हैं। यहाँ यह उल्लेखनीय है की योग्य साधु का तात्पर्य केवल दशनाम सन्यास के भारती सम्प्रदाय से ही हो। अन्य सम्प्रदाय के महात्माजी को गोलमठ के संचालक बनने का अधिकार नही है।

                                        -वैद्य जगदीशचन्द्र लाटा

                                        अंश- हमारा प्राचीन मठ 

Comments

Popular posts from this blog

🚩गोल स्थापना एवम् नागाजी महाराज🚩

बह्मलीन महंत श्री १००८ रावतभारतीजी महाराज के जीवन अंश