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गोलमठ के तीसरे महंत पूज्य स्वामी श्री मनोहरभारतीजी महाराज

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 गोलमठ के तीसरे महंत पूज्य श्री मनोहर भारतीजी महाराज हुए। द्वितीय महंत दामोदर भारतीजी के जीवित समाधी लेने के बाद इन्हें उत्ताराधिकारी बनाया गया था।  इनके कार्यकाल मे हमारे क्षेत्र में मुस्लिम शासकों ने धर्म परिवर्तन के प्रयास किए थे मगर महंत मनोहरभारतीजी ने अपने योगाभ्यास एवं सिद्धता के कारण सनातन धर्म को जनता मे जागृत करते रहें एवम् उन शासको को भी सद्पोदेश देकर सभी को भाईचारे के साथ रहकर सभी धर्मों का आदर करने की धर्मनिरपेक्ष की भावना का परिचय देते रहे।  पूज्य महंतजी ने माता अन्नपूर्णाजी के निर्देशानुसार वि.सं. 1398 में मठ के पूर्व में एक बडे तालाब का जनकल्याणार्थ निर्माण करवाया जो 20 सदी मे जवाई नदी की बाढो से नष्ट हो गया। परन्तु उसके अवशेष आज भी मौजूद है। पूज्य महंतजी ने वि.सं.1402 वैशाख सुदी 13 को योगक्रिया द्वारा समाधिस्थ हो गए। गुरूदेव की समाधि मंदिर प्रांगण मे शोभायमान है।  जय शीलेश्वर री सा!! जय अन्नपूर्णाजी री सा!!  

🚩गोल स्थापना एवम् नागाजी महाराज🚩

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ग्यारहवीं विक्रम शताब्दी आरम्भ होने के पूर्व राजस्थान राज्य के जालौर जिलें मे जवाई नदी के तट पर स्थित वर्तमान उम्मेदाबाद गाँव की जगह एक छोटी सी ढाणी थी, जिसे 'गोलिया' कहते थे। यहाँ केवल खटाणा जाति के राईका रहते थे।  मठ संस्थापन के पश्चात इसका विकास होता रहा। फिर इसका नाम गोल रखा गया तथा बाद ये गोल-सायला के नाम से विख्यात हुआ। गोल के जागीरदार कभी स्थायी नही रहे जागीर का परिवर्तन होता रहा। भूतपूर्व जागीरदार पं. धर्मनारायणजी कॉक ने इस ग्राम का नाम उम्मेदाबाद रख दिया जो अब इसी से जाना जाता है। गाँव की नदी के उस पार उस समय कतरोसण तब एक बडा कस्बा हुआ करता था जो अब एक छोटा सा गाँव रह गया है। उस समय संगम मठ के पूज्य योगिराज श्री १०८ बाल भारतीजी महाराज के महान तपोबली शिष्य नागा सन्यासी श्री १०८ श्री नारायणभारतीजी भारत भ्रमण करते हुए गोल उम्मेदाबाद क्षेत्र मे पधारे थें एवम् भीनमाल के पास शीलाणा गाँव के पहाड़ की गुफा मे खडी तपस्या करने लगे। कुछ काल पश्चात स्वामीजी पुनः भ्रमण को अग्रसर हुए एवं संध्या समय गाँव कतरोसण के तालाब पर पधार कर वहाँ संध्या वंदन करने लगे। गाँव की कुछ