संन्यास सम्प्रदाय के प्रकारों मे इस अंश से गोलमठ की परिपाटी बनी

संन्यास के दशनाम भगवान शंकर के अंग से प्रकट हुए हैं:-

(१) ब्रह्माण्ड से पुरी (२) ललाट से भारती (३) जिव्हा से सरस्वती (४) बाहु से गिरी (५) पर्वत (६) सागर (७) कुक्षि के अरण्य (८) वन (९) चरण से तीर्थ (९) आश्रम 

संन्यास के भाले चार हैं :-

(१) दत्तप्रकाश (२) सूर्यप्रकाश (३) भैरवप्रकाश (४) चन्द्रप्रकाश 

संन्यास की धूनी चार है :-

(१) गोपाल धूनी (२) अजय मेघ धूनी (३) दत्त धूनी (४) सूर्यमुखी धूनी 

संन्यास चार प्रकार का हैं :-

(१) हंस (२) परमहंस (३) बोधन (४) कुटीचर 

इस प्रकार भारती-पद मे भी चार मढी़ है :-

(१) विश्वनाभी मढी़ (२) नरसिंह मढी़ (३) बाल-मुकुन्द मढी़ (४) पदमनाभी मढी़ 

इसी प्रकार भगवान आदि शंकराचार्य द्वारा रचित संन्यास सम्प्रदाय के भारती-पद के विश्वनाभी मढी़ के संगम मठ के महान तपोबली संन्यासी परम पूज्य श्री बालभारतीजी महाराज के महान तपोबली शिष्य परम पूज्य श्री नारायण भारतीजी "नागा" महाराज के गोल उम्मेदाबाद क्षेत्र में पधारने के बाद गोलमठ का इतिहास आगे प्रस्तुत होता है।

ग्यारहवी विक्रम शताब्दी आरम्भ होने से पूर्व कतरोसन गाँव जो आज काफी छोटा लगता है लेकिन उस समय कतरोसन बडा गाँव हुआ करता था। और उम्मेदाबाद मात्र एक ढाणीं था जिसे "गोलिया" कहा करते थे।

                                जारी हैं...........................!

नोट:- अगले अंश मे हम गोल की स्थापना,नामकरण एवम मठ स्थापना संबंधित तथ्य विस्तार से बतायेगें तब तक के लिए 

जय शिलेश्वर री!! जय अन्नपूर्णाजी री!!

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