सयुंक्त जीवित समाधि

जोधपुर दरबार मे राजा मानसिंह जी का राज था उन्होंने श्री ओपनाथजी को उम्मेदाबाद क्षेत्र की जागीर का शासक बनाया था। उनके शासन की नीतिया अत्याचार रूपी थी तथा वो जनता पर काफ़ी कहर ढाते थे परन्तु गोल मठ मे उस समय के सभी महात्मागण(जो लगभग 300 थे) के सहयोग एवं स्थानीय गुरासा श्री राजेंद्रसोमजी के सहयोग से मठ के तेहरवें महंत श्री सोमवारभारती के नेतृत्व मे जनता को ओपनाथ के शोषण एवं अत्याचार से बचाया जाता रहा था।
अपने शासन मे गोल मठ के अवरोध को देख कर जागीरदार ओपनाथ जी ने गोल-उम्मेदाबाद मठ को समूल ध्वस्त-खत्म करने का संकल्प लिया और जोधपुर दरबार मे जाकर राजा मानसिंह जी से गोल मठ के संतो और महंतो की शिकायत कर दी और उन पर मनगणत आरोप लगाकर मानसिंहजी को गोल मठ के खिलाफ भड़का दिया।
उस जागीरदार की बातो मे आकर राजा मानसिंहजी ने गोल मठ को ध्वस्त करने के लिए दशनाम नागा साधुओ की फौज भेजी। इस बात का पता ज़ब गोल मठ मे पड़ा तो महंतजी एवं सभी महात्मागणो की सिद्ध साधना और भगवान शिलेश्वर महादेव एवं माता अन्नपूर्णा जी की कृपा से वह फौज ऐलाना पहुंचते पहुंचते पथ भ्रमित हो गई एवं युद्ध की भावना से आ रही फौज का मन बदल गया और उल्टा जागीरदार ओपनाथ जी के लश्कर से लड़ाई हो गई जिसमे ओपनाथ जी के 32 आदमी रणखेत हो गए एवं ओपनाथ अपने बचे आदमियों के साथ वहा से जान बचाकर भाग गया।
नागो की फौज गोल मठ मे आकर ठहरी व शिलेश्वर महादेव एवं अन्नपूर्णा की समाधि के दर्शन किए महंत श्री सोमवार भारतीजी से भेंट की तथा फौज के महंत ने उम्मेदाबाद क्षेत्र के लोगो से मुलाक़ात कर यहाँ की वस्तुस्तिथि का पता लगाया जिससे जागीरदार ओपनाथ जी की कुचाल का पर्दाफाश हो गया।
इस प्रकार सत्य की जीत होने पर तत्कालीन महंत श्री सोमवार भारतीजी ने उसी दिन जीवित समाधी लेने का निश्चय किया। मंदिर परिसर मे समाधि खुदवाना आरम्भ किया गया ढ़ोल नगाड़े बजने लगे।
उस पल फिर महान शिष्य नागाश्री योगिराज हरिभारतीजी एवं पदमभारतीजी ने महंत सोमवार भारतीजी को समाधि लेने से रोकने लगे एवं दोनों योगी शिष्यों ने स्वयं समाधि लेने की आज्ञा मांगी अब महंतजी और दोनों मे हट पड़ गई क्योंकि महंत सोमवार भारतीजी खुद जीवित समाधि लेना चाहते परन्तु इस मौके पर गांव के लोगो तथा नागो की फौज के महंत ने हमारे महंत जी से निवेदक किया की स्थानीय जागीरदार के कुशासन के अंत हेतु आपके नेतृत्व की नितांत आवश्यकता है अतः आप समाधि ग्रहण का निर्णय टाल दे। प्रबल जनमत के आगे महंत सोमवार भारतीजी ने समाधि लेने का निर्णय टाल दिया। अब समाधि खुद चुकी थी तैयारियां पूर्ण थी किसी को तो समाधि लेनी जरूरी थी तो योगिराज हरिभारतीजी एवं पदमभारतीजी ने समाधि की आज्ञा मांगी एवं महंतजी को आज्ञा देनी पड़ी।
इस प्रकार दोनों सिद्ध योगी शिष्यों ने एक ही समाधि मे विक्रम संवत 1882 चेत्र वदी 13 को जागीरदार ओपनाथ को श्राप देकर जीवित समाधि ग्रहण की। इनके श्रापवंश से ओपनाथ के लश्कर का सर्वनाश हो गया।


जय शिलेश्वर री सा, जय अन्नपूर्णा जी री सा

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