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ऐलाना मठ का संस्थापन

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ऐलाना ग्राम मे विक्रम संवत 1856 मे मठ बसाया गया था। जिसकी संस्थापना गोल-उम्मेदाबाद मठ के पौत्र शिष्य स्वामी श्री पदमभारतीजी महाराज ने की थी।      तब गोल मठ मे 12वें महंतश्री रूपभारतीजी महाराज का कार्यकाल सुचारु था। पदमभारतीजी महाराज गोल मठ के 10वें महंत श्री सुजान भारतीजी महाराज के शिष्य दलाभारतीजी के शिष्य थे।   पदमभारतीजी महान तपोबली एवं योगसिद्ध थे। पदमभारतीजी महाराज के एक शिष्य थे जिनका नाम स्वामी श्री सदानंद भारतीजी था जो व्याकरणाचार्य एवं सन्यास धर्म के प्रखण्ड विद्वान थे कालांतर मे दासपा के ठाकुर श्रीदुर्जनसिंह जी उनको अपना धर्म गुरु मानते थे। समय-समय पर ऐलाना मढी मे गोल मठ के शिष्य रतन यहां संचालक एवं व्यवस्थापक बनते रहे है। वर्तमान मे यहां हनुमान जी भव्य मंदिर है एवं ओम्कारेश्वर महादेव जी का प्राचीन मंदिर भी है। कहाँ जाता है की यहां ओमकार भारतीजी नाम से महंत हुए थे उन्ही के नाम से मठ को ओम्कारेश्वर महादेव से जाना जाने लगा। वर्तमान मे यहां श्री108 श्री राजभारती महाराज महंत है।

जागीरदार ओपनाथ की गलती पर जोधपुर दरबार ने सनद जारी कर गोल मठ से माफ़ी मांगी।

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गोल मठ मे घटे घटनाक्रम के बाद नागो की फौज पुनः जोधपुर दरबार पहुंची वहाँ फौज के महंत ने संपूर्ण घटनाक्रम की विस्तृत जानकारी जोधपुर महाराजा मानसिंह जी को दी। तब महाराजा मानसिंहजी गोल मठ के सन्यासी महात्मागणो एवं महंतजी पर जागीरदार ओपनाथ द्वारा थोपे गए व्यर्थ के आरोपों का पश्चाताप करने लगे। तत्पश्चात जोधपुर दरबार राजा मानसिंहजी ने गोल मठ के तत्कालीन महंतश्री सोमवार भारतीजी को जोधपुर दरबार मे आमंत्रित किया एवं एक घोड़ा व दूसाला भेंट कर क्षमायाचना की व जागीरदार ओपनाथ की गलती को लेकर माफ़ी मांगी एवं वि.सं. 1883 वैशाख वदी 14 को लिखित मे सनद(आधिकारिक आदेश) जारी करते हुए गोल मठ की परम्परागत मर्यादाओ को कायम रखने का आदेश दिया साथ ही संगमरमर का एक भव्य विशाल बाण बनाकर महंतजी की समाधि पर लगाने हेतु भेंट किया जो आज भी गोल मठ मे संरक्षित है। इस प्रकार जोधपुर महाराजा साहब ने जागीरदारान से आपसी झगड़ो को निपटाने मे महंतजी से काफ़ी सहयोग प्राप्त किया। जय शिलेश्वर री सा!! जय अन्नपूर्णाजी री सा!!

गोल मठ के संतो और शिष्यों द्वारा स्थापित मठ

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गोल उम्मेदाबाद या यू कहे की गोल मठ परिवेश मे कालांतर समय मे 300-350 संत महात्माओ और उनके शिष्यों का डेरा था। जिन्होंने इस पर्यावरण मे विचरण कर धर्म की अलख जगाई थी। गोलमठ से निकले सिद्ध शिष्य, पौत्र शिष्य,पड़पौत्र शिष्य और संत-महात्माओ ने इस क्षेत्र मे अनोको मठ, मढ़ी एवं देव स्थानों की स्थापना की। संत और शिष्यों के नाम हम आपको आगे विस्तार से बताएँगे पर निम्न गांवो मे मठो की स्थापना जिन्हे गोल मठ की शाखा के रूप मे भी जाना जाता है उनमे वि.सं 1609 गाँव देलदरी, संवत 1653 मे देवाणदी (तोरणेश्वर महादेव), संवत 1691 मे धनानी मठ, संवत 1705 मे मांडवला मठ, संवत 1808 मे रायथल मठ, संवत 1818 मे रेवतडा मठ, संवत 1833 मे बाकरा मठ, ओवलोज, संवत 1841 मे सेवाडा मठ, संवत 1856 मे ऐलाना मठ, देसु भाकरी मठ और गुजरात मे जावाल,कुछावाड़ा एवं आलवाडा मे निम्न वि.सं.👆🏻 मे गोल मठ के महंतो के शिष्यों और पौत्र शिष्यों ने मठो की स्थापना की एवं सम्पूर्ण जोधपुर मारवाड दरबार मे अनोको स्थानों पर सिद्ध धूणीया जगाई एवं धर्म का प्रचार प्रचार किया। #आपणों_उम्मेदाबाद #गोल_मठ सभी सन् विक्रम संवत मे है और अब विक्रम संवत 20

सयुंक्त जीवित समाधि

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जोधपुर दरबार मे राजा मानसिंह जी का राज था उन्होंने श्री ओपनाथजी को उम्मेदाबाद क्षेत्र की जागीर का शासक बनाया था। उनके शासन की नीतिया अत्याचार रूपी थी तथा वो जनता पर काफ़ी कहर ढाते थे परन्तु गोल मठ मे उस समय के सभी महात्मागण(जो लगभग 300 थे) के सहयोग एवं स्थानीय गुरासा श्री राजेंद्रसोमजी के सहयोग से मठ के तेहरवें महंत श्री सोमवारभारती के नेतृत्व मे जनता को ओपनाथ के शोषण एवं अत्याचार से बचाया जाता रहा था। अपने शासन मे गोल मठ के अवरोध को देख कर जागीरदार ओपनाथ जी ने गोल-उम्मेदाबाद मठ को समूल ध्वस्त-खत्म करने का संकल्प लिया और जोधपुर दरबार मे जाकर राजा मानसिंह जी से गोल मठ के संतो और महंतो की शिकायत कर दी और उन पर मनगणत आरोप लगाकर मानसिंहजी को गोल मठ के खिलाफ भड़का दिया। उस जागीरदार की बातो मे आकर राजा मानसिंहजी ने गोल मठ को ध्वस्त करने के लिए दशनाम नागा साधुओ की फौज भेजी। इस बात का पता ज़ब गोल मठ मे पड़ा तो महंतजी एवं सभी महात्मागणो की सिद्ध साधना और भगवान शिलेश्वर महादेव एवं माता अन्नपूर्णा जी की कृपा से वह फौज ऐलाना पहुंचते पहुंचते पथ भ्रमित हो गई एवं युद्ध की भावना से आ रही फौज

बह्मलीन महंत श्री १००८ रावतभारतीजी महाराज के जीवन अंश

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💐महन्तजी के जीवन दर्शन की कुछ बाते.....💐 श्री 1008 महंतजी श्री रावतभारतीजी का जन्म गाँव ओटवाला में गुंसाई श्री गणेशभारतीजी के घर श्रीमति गंगादेवी की कोख से हुआ। बाल्यवस्था में ही महंतजी को पितृ सुख से वंचित होना पड़ा, परंतु पूर्व जन्म संस्कार वश आप मात्र 10 वर्ष की आयु में वि.स.2012 को महाशिवरात्री के दिन गोल मठ के 17वें पूज्य महंतजी श्री 1008 फुलाभारतीजी की शरण में आ गए। आपकी शिक्षा व दीक्षा यही से सम्पन्न हुई। वि.स.2019 में पूज्य गुरुदेव को लकवा हो जाने के कारण मठ में कोई योग्य महात्मा न होने से आपको स्वार्थी लोगो से कडा संघर्ष करना पड़ा। भगवान शिलेश्वर महादेव एवं अन्नपूर्णा माताजी में आपकी अटूट श्रद्धा है। आप मठ में प्रशासन सुधार, सन्यास आश्रम निर्माण, गौशाला निर्माण,बजरंबली एवम् नागाजी मंदिर निर्माण उनकी प्रतिष्ठा एवम् महा गायत्री यज्ञ आयोजन आदि में आपकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।  पुरे गाँव के प्रमुखगणो ने आपको सरपंच पद के निर्वाचन हेतु पूज्य बड़े महंतजी से निवेदन भी किया और जनता का आग्रह देखकर गाँव के हित में महन्तजी ने आपको सरपंच पद की आज्ञा देदी। आपसी गुटबाजी के कारण आपक

धनानी मठ की स्थापना और महंत

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धनानी मठ की स्थापना 390 वर्ष पूर्व गोलमठ के पडशिष्य अर्थात उम्मेदाबाद गोलमठ के छठें महंतश्री पंडित रंगाभारतीजी महाराज के शिष्य नरोत्तम भारतीजी के शिष्य श्री कल्याणभारतीजी के शिष्य परम पूज्य नागा सन्यासी श्री रूपभारतीजी महाराज ने वि.सं. 1691 वैशाख सुदी ३ को थी।  पूज्य नागा सन्यासी रूपभारतीजी महाराज ने धानसा के राठौड परिवार को अपने वचनों से अभिभूत करके धानसा के पश्चिम मे दो मील दूरी पर जंगल मे इस मठ की स्थापना की थी। मठ स्थापना के बाद आस-पास मे बस्तिया बस्ती गई और पूरा एक गाँव का रूप बन गया जिसे हम आज धनानी और धनानी मठ के नाम से जानते है। यहाँ श्री नागेश्वर महादेवजी का मंदिर है।  मठ की स्थापना के साथ-साथ पूज्य नागा सन्यासी रूपभारतीजी महाराज ने एक केर का पेड लगाया जिस पर कहाँ जाता है आज भी उनके वचनों से 'रूद्राक्ष' लगते है यह अपने आप मे एक दिव्य चमत्कार है। यहाँ यह भी एक मान्यता है की बच्चो मे कूकर खाँसी होने पर नागा बावसी का नाम लेकर धूपिया करके रूद्राक्ष गले मे बांधने से आराम हो जाता है। पूज्य सन्यासी रूपभारतीजी महाराज ने जीवित समाधि ग्रहण की थी और नागाजी बावसी के ना

गोलमठ के तीसरे महंत पूज्य स्वामी श्री मनोहरभारतीजी महाराज

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 गोलमठ के तीसरे महंत पूज्य श्री मनोहर भारतीजी महाराज हुए। द्वितीय महंत दामोदर भारतीजी के जीवित समाधी लेने के बाद इन्हें उत्ताराधिकारी बनाया गया था।  इनके कार्यकाल मे हमारे क्षेत्र में मुस्लिम शासकों ने धर्म परिवर्तन के प्रयास किए थे मगर महंत मनोहरभारतीजी ने अपने योगाभ्यास एवं सिद्धता के कारण सनातन धर्म को जनता मे जागृत करते रहें एवम् उन शासको को भी सद्पोदेश देकर सभी को भाईचारे के साथ रहकर सभी धर्मों का आदर करने की धर्मनिरपेक्ष की भावना का परिचय देते रहे।  पूज्य महंतजी ने माता अन्नपूर्णाजी के निर्देशानुसार वि.सं. 1398 में मठ के पूर्व में एक बडे तालाब का जनकल्याणार्थ निर्माण करवाया जो 20 सदी मे जवाई नदी की बाढो से नष्ट हो गया। परन्तु उसके अवशेष आज भी मौजूद है। पूज्य महंतजी ने वि.सं.1402 वैशाख सुदी 13 को योगक्रिया द्वारा समाधिस्थ हो गए। गुरूदेव की समाधि मंदिर प्रांगण मे शोभायमान है।  जय शीलेश्वर री सा!! जय अन्नपूर्णाजी री सा!!